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अदि॑ति॒र्द्यौरदि॑तिर॒न्तरि॑क्ष॒मदि॑तिर्मा॒ता स पि॒ता स पु॒त्रः। विश्वे॑ दे॒वा अदि॑तिः॒ प़ञ्च॒ जना॒ अदि॑तिर्जा॒तमदि॑ति॒र्जनि॑त्वम् ॥

English Transliteration

aditir dyaur aditir antarikṣam aditir mātā sa pitā sa putraḥ | viśve devā aditiḥ pañca janā aditir jātam aditir janitvam ||

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Pad Path

अदि॑तिः। द्यौः। अदि॑तिः। अ॒न्तरि॑क्षम्। अदि॑तिः। मा॒ता। सः। पि॒ता। सः। पु॒त्रः। विश्वे॑। दे॒वाः। अदि॑तिः। पञ्च॑। जनाः॑। अदि॑तिः। जा॒तम्। अदि॑तिः। जनि॑ऽत्वम् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:89» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इन विद्वानों के संग से क्या-क्या सेवने और जानने योग्य है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुमको चाहिये कि (द्यौः) प्रकाशयुक्त परमेश्वर वा सूर्य्य आदि प्रकाशमय पदार्थ (अदितिः) अविनाशी (अन्तरिक्षम्) आकाश (अदितिः) अविनाशी (माता) माँ वा विद्या (अदितिः) अविनाशी (सः) वह (पिता) उत्पन्न करने वा पालनेहारा पिता (सः) वह (पुत्रः) औरस अर्थात् निज विवाहित पुरुष से उत्पन्न वा क्षेत्रज अर्थात् नियोग करके दूसरे से क्षेत्र में हुआ विद्या से उत्पन्न पुत्र (अदितिः) अविनाशी है तथा (विश्वे) समस्त (देवाः) विद्वान् वा दिव्य गुणवाले पदार्थ (अदितिः) अविनाशी हैं (पञ्च) पाँचों ज्ञानेन्द्रिय और (जनाः) जीव भी (अदितिः) अविनाशी हैं, इस प्रकार जो कुछ (जातम्) उत्पन्न हुआ वा (जनित्वम्) होनेहारा है, वह सब (अदितिः) अविनाशी अर्थात् नित्य है ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमाणुरूप वा प्रवाहरूप से सब पदार्थ नित्य मानकर दिव् आदि पदार्थों की अदिति संज्ञा की है। जहाँ-जहाँ वेद में अदिति शब्द पढ़ा है, वहाँ-वहाँ प्रकरण की अनुकूलता से दिव् आदि पदार्थों में से जिस-जिस की योग्यता हो उस-उस का ग्रहण करना चाहिये। ईश्वर, जीव और प्रकृति अर्थात् जगत् का कारण इनके अविनाशी होने से उसकी भी अदिति संज्ञा है ॥ १० ॥ इस सूक्त में विद्वान्, विद्यार्थी और प्रकाशमय पदार्थों का विश्वेदेव पद के अन्तर्गत होने से वर्णन किया है। इससे इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति है, ऐसा जानना चाहिये ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

एतेषां सङ्गेन किं किं सेवितुं विज्ञातुं च योग्यमित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! युष्माभिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माताऽदितिः स पिता स पुत्रश्चादितिर्विश्वे देवा अदितिः पञ्चेन्द्रियाणि जनाश्च तथा एवं जातमात्रं कार्य्यं जनित्वं जन्यञ्च सर्वमदितिरेवेति वेदितव्यम् ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (अदितिः) विनाशरहिता (द्यौः) प्रकाशमानः परमेश्वरः सूर्य्यादिर्वा (अदितिः) (अन्तरिक्षम्) (अदितिः) (माता) मान्यहेतुर्जननी विद्या वा (सः) (पिता) जनकः पालको वा (सः) (पुत्रः) औरसः क्षेत्रजादिर्विद्याजो वा (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसो दिव्यगुणाः पदार्था वा (अदितिः) (पञ्च) इन्द्रियाणि (जनाः) जीवाः (अदितिः) उत्पत्तिनाशरहिता (जातम्) यत्किञ्चिदुत्पन्नम् (अदितिः) (जनित्वम्) उत्पत्स्यमानम् ॥ १० ॥
Connotation: - अत्र द्यौः इत्यादीनां कारणरूपेण प्रवाहरूपेण वाऽविनाशित्वं मत्वा दिवादीनामदितिसंज्ञा क्रियते। अत्र यत्र वेदेष्वदितिशब्दः पठितस्तत्र प्रकरणाऽनुकूलतया दिवादीनां मध्याद्यस्य यस्य योग्यता भवेत्तस्य तस्य ग्रहणं कार्य्यम्। ईश्वरस्य जीवानां कारणस्य प्रकृतेश्चाविनाशित्वाददितिसंज्ञा वर्त्तत एव ॥ १० ॥ अत्र विदुषां विद्यार्थिनां प्रकाशादीनां च विश्वे देवान्तर्गतत्वाद्वर्णनं कृतमत एतदुक्तार्थस्य सूक्तस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात परमाणूरूप (कारणरूप) किंवा प्रवाहरूपाने सर्व पदार्थ नित्य मानून दिव (दिव्य) इत्यादी पदार्थांची अदिती ही संज्ञा आहे. वेदामध्ये जेथे जेथे अदिती शब्द आलेला आहे तेथे तेथे प्रकरणानुसार दिव इत्यादी पदार्थातून जो योग्य असेल तो अर्थ ग्रहण केला पाहिजे. ईश्वर जीव व प्रकृती अर्थात जगाचे कारण हे अविनाशी असल्यामुळे त्याची अदिती ही संज्ञा आहे. ॥ १० ॥